एकादशी ( Ekadashi ) : महत्व और महिमा
एकादशी ( Ekadashi ) हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसे हर महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाया जाता है। एकादशी व्रत को पवित्र और पुण्यदायी माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और विशेष रूप से व्रत और उपवास रखे जाते हैं। एकादशी व्रत का उल्लेख पुराणों और शास्त्रों में मिलता है, और यह व्रत व्यक्ति के जीवन में धार्मिक, मानसिक और शारीरिक शुद्धि लाता है।
एकादशी ( Ekadashi ) का धार्मिक महत्व
एकादशी ( Ekadashi ) का धार्मिक महत्व अत्यंत उच्च है। इसे विष्णु भक्ति का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से मनुष्य के पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु के प्रिय व्रतों में एकादशी का विशेष स्थान है। विष्णु पुराण और पद्म पुराण में एकादशी व्रत की महिमा का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से एकादशी का व्रत करता है, उसे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।
एकादशी ( Ekadashi ) व्रत की विधि
एकादशी ( Ekadashi ) व्रत की विधि सरल और नियमबद्ध है। व्रत का प्रारंभ दशमी की रात से ही हो जाता है। दशमी को सात्विक भोजन करना चाहिए और रात को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करके भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने व्रत का संकल्प लिया जाता है। दिन भर निराहार रहकर भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करना चाहिए और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। संध्या को भगवान की आरती उतारकर भोग लगाना चाहिए। द्वादशी के दिन व्रत का पारण किया जाता है और ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है।
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत प्रत्येक चंद्र मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में एकादशी को भगवान विष्णु की प्रिय तिथि बताया गया है। इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत को भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है और इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए।
एकादशी ( Ekadashi ) व्रत कथा
प्राचीन काल में एक राजा हुआ करते थे, जिनका नाम हारिशचन्द्र था। वे सत्यवादी और धर्मपरायण थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और समृद्ध थी। एक दिन उन्हें स्वप्न में महर्षि गौतम ने दर्शन देकर बताया कि उनके राज्य में एक बड़ा संकट आने वाला है। राजा ने महर्षि से उपाय पूछा तो महर्षि ने उन्हें एकादशी ( Ekadashi ) व्रत करने की सलाह दी।
महर्षि ने राजा को एकादशी व्रत की महिमा और विधि बताई। उन्होंने कहा, “हे राजन! एकादशी व्रत भगवान विष्णु का प्रिय व्रत है। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।”
राजा हारिशचन्द्र ने महर्षि की बातों को ध्यान से सुना और व्रत करने का निश्चय किया। उन्होंने अपने राज्य में सभी को एकादशी व्रत रखने का आदेश दिया। राजा स्वयं भी विधिपूर्वक व्रत रखने लगे। उन्होंने पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान विष्णु का पूजन किया और कथा सुनी।
एक बार की बात है, एक पवित्र और धर्मपरायण ब्राह्मण अपने पुत्र-पुत्रवधू के साथ रहता था। वह भी एकादशी व्रत का पालन करता था। ब्राह्मण की पुत्रवधू बहुत ही पवित्र और धार्मिक थी। एक दिन ब्राह्मण की पुत्रवधू ने अपने पति से एकादशी व्रत की महिमा के बारे में पूछा। पति ने उसे बताया कि इस व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
पुत्रवधू ने व्रत का पालन करने का निश्चय किया और अगले दिन से ही विधिपूर्वक व्रत करना प्रारंभ किया। उसने पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान विष्णु का पूजन किया और कथा सुनी। इस व्रत के प्रभाव से उसके जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति हुई और सभी कष्टों से मुक्ति मिली।
एकादशी ( Ekadashi ) व्रत की महिमा
एकादशी ( Ekadashi ) व्रत की महिमा अत्यंत अद्भुत है। इसे करने से मनुष्य के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। यह व्रत भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और इसे करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है और वह मोक्ष की प्राप्ति करता है।
एकादशी ( Ekadashi ) व्रत की विधि
एकादशी ( Ekadashi ) व्रत करने के लिए श्रद्धालु को एक दिन पूर्व दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः काल स्नान करके भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूरे दिन निराहार रहना चाहिए। शाम को भगवान विष्णु का पूजन करके कथा सुननी चाहिए और रात को जागरण करना चाहिए। द्वादशी के दिन प्रातः काल स्नान करके व्रत का पारण करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा देनी चाहिए।
26 प्रकार की एकादशी ( Ekadashi )
हिंदू पंचांग में 26 प्रकार की एकादशी तिथियां होती हैं, जो इस प्रकार हैं:
वरूथिनी एकादशी
मोहिनी एकादशी
अपरा एकादशी
निर्जला एकादशी
योगिनी एकादशी
कामिका एकादशी
पवित्रा एकादशी